Home Haryana News बादशाहपुर में नहीं चल रहा कुमुदनी का सिंपैथी कार्ड:जाट वोट कांग्रेस-AAP में बंटने से मुश्किलें बढ़ीं; यादव वोटर निर्णायक

बादशाहपुर में नहीं चल रहा कुमुदनी का सिंपैथी कार्ड:जाट वोट कांग्रेस-AAP में बंटने से मुश्किलें बढ़ीं; यादव वोटर निर्णायक

बादशाहपुर में नहीं चल रहा कुमुदनी का सिंपैथी कार्ड:जाट वोट कांग्रेस-AAP में बंटने से मुश्किलें बढ़ीं; यादव वोटर निर्णायक

बादशाहपुर से निर्दलीय कैंडिडेट कुमुदनी और उनके पति स्व. राकेश दौलताबाद। दौलताबाद 2019 में इसी सीट से आजाद कैंडिडेट के तौर पर जीते थे।

हरियाणा में वर्ष 2009 व 2014 के दो चुनाव हारने के बाद 2019 में निर्दलीय चुनाव जीते दिवंगत MLA राकेश दौलताबाद की पत्नी कुमुदनी चुनावी चक्रव्यूह में फंसती नजर आ रही हैं। उनका साथ न तो अपने दे रहे हैं और न ही समर्थक कहीं नजर आ रहे हैं। उन्होंने अपने पति

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वहीं जाट समाज भी आप प्रत्याशी बीर सिंह राणा और कांग्रेस के वर्धन यादव के साथ खड़ा होता नजर आ रहा है। पिछले चुनाव में दौलताबाद का साथ देने वाले BJP नेताओं के अब दूसरे पाले में होने से भी कुमुदनी की परेशानी बढ़ रही है।

बादशाहपुर सीट से 2019 में निर्दलीय चुनाव लड़ने वाले दौलताबाद ने BJP प्रत्याशी मनीष यादव को मात दी थी। हालांकि चुनाव के बाद वे मनोहर सरकार के पाले में जा खड़े हुए। उस समय चर्चा थी कि बीजेपी के ही कुछ नेता जो राव नरबीर सिंह की टिकट कटने से नाराज थे, उन्होंने दौलताबाद का साथ दिया था। अब इस चुनाव में खुद राव नरबीर सिंह चुनावी रण में हैं, तो कुमुदनी अकेले पड़ती नजर आ रही हैं। वहीं वह पिछले 5 साल के कार्यकाल का हिसाब देने में भी असमर्थ नजर आ रहीं हैं।

स्व. राकेश दौलताबाद की पत्नी कुमुदनी चुनाव में अकेली पड़ती नजर आ रही है।

स्व. राकेश दौलताबाद की पत्नी कुमुदनी चुनाव में अकेली पड़ती नजर आ रही है।

दौलताबाद के कट्टर समर्थक अब पाला बदल चुके हैं, तो जाट समाज आप प्रत्याशी बीर सिंह व कांग्रेस के वर्धन यादव के साथ खड़ा नजर आ रहा है। यादव वोटर्स की बात करें तो वह बीजेपी के राव नरबीर सिंह और कांग्रेस के वर्धन यादव के बीच बंटना तय है। वहीं अन्य जाति के वोट सभी में बंटना भी तय हैं। शायद इसी के चलते कुमुदनी ने सिंपैथी कार्ड फेंका, लेकिन वह सफल होते नजर नहीं आ रहा है।

MLA की कार्यप्रणाली पर उठ रहे सवाल

पूर्व MLA दौलताबाद भले ही मनोहर सरकार को समर्थन देते रहे लेकिन अपने क्षेत्र को कोई सौगात नहीं दिला पाए। क्षेत्र में लोग मूलभूत सुविधाओं से जूझ रहे हैं। वहां ना तो हॉस्पिटल, कॉलेज व इंडस्ट्रीज आईं ना ही जाम, ओवरफ्लो सीवर, बरसाती पानी के जलभराव, बिजली जैसी समस्याओं का निदान हुआ।

भाजपा प्रत्याशी नरबीर सिंह। माना जाता है कि 2019 में इनके समर्थकों के ही सहयोग से ही राकेश दौलताबाद चुनाव जीते थे।

भाजपा प्रत्याशी नरबीर सिंह। माना जाता है कि 2019 में इनके समर्थकों के ही सहयोग से ही राकेश दौलताबाद चुनाव जीते थे।

विपक्ष के तीखे हमले ने निर्दलीय प्रत्याशी की बढ़ाई मुसीबत भले ही पूर्व MLA दौलताबाद क्षेत्र के विकास के लिए मनोहर सरकार को समर्थन देते रहे, लेकिन कांग्रेस, बीजेपी से लेकर आप प्रत्याशी लगातार उनकी कार्यप्रणाली पर सवाल उठा रहे हैं। तीनों ही आरोप लगा रहे कि निजी स्वार्थ के बजाय आम लोगों के लिए 5 साल में कोई काम नहीं हुए। बुनियादी सुविधाओं के लिए जूझ रहे लोग भी यह मानने को मजबूर हैं कि बादशाहपुर 5 साल पीछे आ गया। इन तीनों विपक्षी नेताओं के चक्रव्यूह में कुमुदनी पूरी तरह फंसती नजर आ रहीं हैं।

आप प्रत्याशी बीर सिंह राणा।

आप प्रत्याशी बीर सिंह राणा।

सोसाइटी तक सिमटीं कुमुदनी प्रदेश की सबसे बड़ी विधानसभा बादशाहपुर में कुमुदनी का प्रचार-प्रसार चंद सोसाइटी तक ही सीमित होकर रह गया है। गांव, ढाणी, कालोनी तक वह ना तो पहुंच पा रही ना ही उनके गिने-चुने समर्थक इसको लेकर प्रयास कर रहे हैं। प्रचार में पिछड़ने के चलते ही कई सोसाइटी वाले सत्ता में आने वाली कांग्रेस-बीजेपी प्रत्याशी का ही साथ देने की चर्चा करने लगे हैं। इन लोगों की सोच है कि जो काम सत्ता पक्ष का विधायक करा सकता है वह निर्दलीय के बस की बात नहीं है।

कांग्रेस प्रत्याशी वर्धन यादव।

कांग्रेस प्रत्याशी वर्धन यादव।

यादव वोटर्स निर्णायक बादशाहपुर सीट पर करीब सवा 5 लाख वोटर्स हैं। इनमें सर्वाधिक यादव वोटर्स हैं जो हार-जीत तय करते हैं। हालांकि इनके अलावा जाट, दलित वोटर्स भी अहम है। इस सीट पर पहली बार 2009 में हुए चुनाव में कांग्रेस के राव धर्मपाल तो 2014 में पूर्व मंत्री राव नरबीर सिंह और 2019 में निर्दलीय स्व. राकेश दौलताबाद चुनाव जीते हैं। यहां चौथी बार चुनाव होने जा रहा है और जातिगत समीकरण के आधार पर यहां पर बीजेपी-कांग्रेस में ही सीधी लड़ाई नजर आ रही है।

हालांकि आप ने जाट चेहरे बीर सिंह पर दांव लगाकर यहां त्रिकोणीय मुकाबला बना दिया है। बीर सिंह के सक्रिय होने और धारदार चुनाव प्रचार के कारण ही निर्दलीय कुमुदनी के हर दांव उल्टे पड़ते नजर आ रहे हैं।

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