Home Business जुलाई में थोक महंगाई घटकर 2.04% पर आई:रोजाना की जरूरत वाले सामानों के दाम कम हुए, जून में महंगाई 3.36% थी

जुलाई में थोक महंगाई घटकर 2.04% पर आई:रोजाना की जरूरत वाले सामानों के दाम कम हुए, जून में महंगाई 3.36% थी

नई दिल्ली5 दिन पहले

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सब्जी, दाल और अनाज की महंगाई कम होने से होलसेल महंगाई में गिरावट आई है। - Dainik Bhaskar

सब्जी, दाल और अनाज की महंगाई कम होने से होलसेल महंगाई में गिरावट आई है।

जुलाई में थोक महंगाई घटकर 2.04% पर आ गई है। जून में ये बढ़कर 3.36% पर पहुंच गई थी, जो महंगाई का 16 महीनों का ऊपरी स्तर था। वहीं, मई में थोक महंगाई 2.61% पर थी। 14 अगस्त को जुलाई महीने के थोक महंगाई के आंकड़े जारी किए गए।

इससे पहले 12 अगस्त को रिटेल महंगाई के आंकड़े जारी किए गए थे। जुलाई महीने में रिटेल महंगाई घटकर 3.54% पर आ गई है। ये 59 महीने का निचला स्तर है। अगस्त 2019 में महंगाई 3.21% थी। खाने-पीने की चीजों के दाम घटने से महंगाई घटी थी।

फ्यूल और पावर की महंगाई बढ़ी, प्राइमरी आर्टिकल्स की घटी

  • रोजाना की जरूरत वाले सामानों की महंगाई दर 8.80% से घटकर 3.08% हो गई।
  • खाने-पीने की चीजों की महंगाई 8.68% से घटकर 3.55% हो गई।
  • फ्यूल और पावर की थोक महंगाई दर 1.03% से बढ़कर 1.72% रही।
  • मैन्युफैक्चरिंग प्रोडक्ट्स की थोक महंगाई दर 1.43% से बढ़कर 1.58% रही।

होलसेल महंगाई के तीन पार्ट होते हैं:
पाइमरी आर्टिकल जिसका वेटेज 22.62% है। फ्यूल एंड पावर का वेटेज 13.15% और मैन्युफैक्चर्ड प्रोडक्ट का वेटेज सबसे ज्यादा 64.23% है। पाइमरी आर्टिकल के भी चार हिस्से हैं:

  1. फूड आर्टिकल्स जैसे अनाज, गेहूं, सब्जियां
  2. नॉन फूड आर्टिकल में ऑइल सीड आते हैं
  3. मिनरल्स
  4. क्रूड पेट्रोलियम

WPI का आम आदमी पर असर
थोक महंगाई के लंबे समय तक बढ़े रहने से ज्यादातर प्रोडक्टिव सेक्टर पर इसका बुरा असर पड़ता है। अगर थोक मूल्य बहुत ज्यादा समय तक ऊंचे स्तर पर रहता है, तो प्रोड्यूसर इसका बोझ कंज्यूमर्स पर डाल देते हैं। सरकार केवल टैक्स के जरिए WPI को कंट्रोल कर सकती है।

जैसे कच्चे तेल में तेज बढ़ोतरी की स्थिति में सरकार ने ईंधन पर एक्साइज ड्यूटी कटौती की थी। हालांकि, सरकार टैक्स कटौती एक सीमा में ही कम कर सकती है। WPI में ज्यादा वेटेज मेटल, केमिकल, प्लास्टिक, रबर जैसे फैक्ट्री से जुड़े सामानों का होता है।

महंगाई कैसे मापी जाती है?
भारत में दो तरह की महंगाई होती है। एक रिटेल, यानी खुदरा और दूसरी थोक महंगाई होती है। रिटेल महंगाई दर आम ग्राहकों की तरफ से दी जाने वाली कीमतों पर आधारित होती है। इसको कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स (CPI) भी कहते हैं। वहीं, होलसेल प्राइस इंडेक्स (WPI) का अर्थ उन कीमतों से होता है, जो थोक बाजार में एक कारोबारी दूसरे कारोबारी से वसूलता है।

महंगाई मापने के लिए अलग-अलग आइटम्स को शामिल किया जाता है। जैसे थोक महंगाई में मैन्युफैक्चर्ड प्रोडक्ट्स की हिस्सेदारी 63.75%, प्राइमरी आर्टिकल जैसे फूड 22.62% और फ्यूल एंड पावर 13.15% होती है। वहीं, रिटेल महंगाई में फूड और प्रोडक्ट की भागीदारी 45.86%, हाउसिंग की 10.07% और फ्यूल सहित अन्य आइटम्स की भी भागीदारी होती है।

RBI ने इस वित्त वर्ष के लिए रिटेल महंगाई अनुमान 4.5% रखा था
हाल ही में हुई मॉनेटरी पॉलिसी कमेटी की मीटिंग के दौरान RBI ने इस वित्त वर्ष के लिए अपने महंगाई अनुमान को 4.5% पर अपरिवर्तित रखा था।

RBI गवर्नर ने कहा था- महंगाई कम हो रही है, लेकिन प्रोग्रेस धीमी और असमान है। भारत की महंगाई और ग्रोथ ट्रैजेक्टरी संतुलित तरीके से आगे बढ़ रही है, लेकिन यह सुनिश्चित करने के लिए सतर्क रहना महत्वपूर्ण है कि महंगाई टारगेट के अनुरूप हो।

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